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मत्स्यावतार का मतलब मछली के अवतार से हैं। जो कि भगवान विष्णु के दस अवतार में से प्रथम है। इस अवतार के दौरान भगवान विष्णु ने मनुष्य को भयानक जल प्रलय से बचाया था तथा इसी अवतार में भगवान विष्णु ने हयग्रीव नामक राक्षस का वध किया था जिसने वेदों को चुराकर सागर की गहराई में छिपा दिया था।


मत्स्य अवतार का अर्थ

मत्स्य अवतार एक प्राचीन हिंदू पौराणिक कथा में प्रमुख रूप से प्रस्तुत होता है। इस अवतार के द्वारा भगवान विष्णु ने मनुष्य की सुरक्षा और धर्म के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य किया। मत्स्य अवतार उस समय की कथा है जब पृथ्वी पर पाप और पापियों की संख्या अत्यधिक हो गई थी या यह कह लीजिए कि पृथ्वी के हर कोने में पाप ही पाप हो रहा था। लेकिन उस वक्त भी कुछ ऐसे मनुस्य थे जो अपना समय भगवन की पूजा और पुण्य करने में गुजारते थे। उन्ही जीव-जन्तुओ की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार लिया जिसे हम मनुस्य मत्स्यावतार कहते है।


मत्स्य अवतार की कहानी

इस कथानुसार जब सृस्टि में प्रलय आने वाला था उस समय मनु नमक एक राजा थे जो की भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार वे सुबह के समय सूर्यनारायण को अर्घ्य दे रहे थे तभी एक मछली नें उनसे कहा कि " हे राजन मुझे अपने कमंडल में रख लो, यहाँ इस जलचर में बहुत खतरनाक जीव-जंतु है जो मुझे अपना आहार बना सकते है " , मछली की विनती पर राजा मनु ने उसे अपने कमंडल में रख कर अपने महल की ओर चल दिए।


कुछ समय पश्चात, वह मछली कमंडल के आकर में आ गयी। जिसके बाद मनु ने उन्हें कमंडल से बारे आकर के वास्तु में उन्हें रहने का स्थान दिया लेकिन वह मछली फिर से उस बारे आकर के वास्तु जितना बड़ा हो गयी। मनु ने उस मछली को इसके बाद पिछले से भी बड़ी आकर की वस्तु में रख दिया लेकिन फिर से वह मछली वस्तु के आकर जितना हो गयी। इसी तरह अंत में राजा मनु ने मछली के सामने अपना सर नतमस्तक किया और कहा - हे प्रभु कोई भी जीव-जंतु इस तरह इतनी जल्दी इतना बड़ा नहीं हो सकता आप जरूर इस अवतार में मेरे प्रभु विष्णु हैं , कृपया मुझे अपना दर्शन करवाए "। इसके बाद मत्स्य के रूप में भगवन विष्णु ने मनु को दर्शन दिए और कहे " राजन मैं आपको आगाह करने आया था की आज से ठीक सातवे दिन पृथ्वी पर प्रलय आएगा तत्पश्चात् विश्व का नया श्रृजन होगा आप सत्यव्रत को सभी जड़ी-बूटी, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को इकट्ठा करले। इसके बाद ठीक सातवे दिन पृथ्वी पैर प्रलय आया लेकिन मनु प्रभु द्वारा भेजे गए नाव में बैठ गए। प्रलय आते ही मत्स्य रूपी भगवान विष्णु ने नाव को स्वयं खींचकर मनु द्वारा संसार का फिर से सृजन किया।


मत्स्य अवतार की भूमिका

यही नहीं भगवन विष्णु ने मत्स्य अवतार में ही हयग्रीव नामक राक्षस के अंत किया जो की ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित वेदों को ब्रह्मा जी के निद्रामग्न के समय लेकर भाग गया। जिसके कारण संसार में पाप और अधर्म छा गया। ब्रह्मदेव ने ये बात भगवान विष्णु को बताई। तत्पश्चात भगवन विष्णु ने मत्स्य रूप में हयग्रीव का अंत कर उस से वेदों को लेकर ब्रह्मा को पुनः समर्पित कर दिया।


मत्स्य अवतार का महत्व

यह मत्स्य अवतार भगवान विष्णु की महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध अवतारों में से एक है। यह अवतार मनुष्य के उत्थान और पुनर्जन्म के संकेत के रूप में मान्यता प्राप्त है। मत्स्य अवतार के माध्यम से, भगवान विष्णु ने मनुष्य को प्राकृतिक प्रलय से बचाया और धर्म के प्रतीक के रूप में सत्य की प्रमाणित करते हैं।
इस रूप में, मत्स्य अवतार विष्णु भगवान के द्वारा मनुष्य की रक्षा और धर्म के संरक्षण की महत्वपूर्ण कथाएं प्रस्तुत करता है। यह अवतार हिंदू धर्म में आदर्श जीवन की मार्गदर्शक कथाओं में से एक है और लोगों को सच्ची प्रेम और धर्म की महत्वता को समझाता है।


मत्स्य अवतार से संबंधित महत्वपूर्ण लिंक

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